चन्देरी का गौरव *क्रांतिवीर मर्दन सिंह बुंदेला*



चन्देरी [जनकल्याण मेल] हम बिरसा मुंडा को याद करते हैं, हम रानी लक्ष्मीबाई को याद करते हैं, हम तात्या टोपे को याद करते हैं, हम भगत सिंह, चंद्रशेखर, अशफाक उल्ला को याद करते हैं।

यह तो बानगी है समय-समय पर हम सब इन जैसे एक नहीं अनगिनत वीर शहीदों को याद करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा पूर्वक सिर झुका कर नमन करते हैं, श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। हम लिखते, पढ़ते और बोलते हैं कि-

*शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।* 

*वतन पर मिटने वालों का बस यही बाकी निशा होगा।*

हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उक्त समस्त नाम-अनाम वीर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देशभक्तों ने स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देते हुए देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया है।

हमें ऐसा ही करना चाहिए और पूरी शिद्दत के साथ करना चाहिए क्योंकि यह हमारा राष्ट्र धर्म है। हमें इसलिए और जोर-शोर से करना चाहिए ताकि आगे आने वाली पीढ़ी को यह जानकारी मात्र सफेद कागज पर ही पढ़ने को नहीं मिले बल्कि धरातल पर भी वह यह समझ सके कि देश के प्रति कुर्बान होने वालों का क्या व्यक्तित्व और कृतित्व रहा है उन्होंने किन हालातों में कैसे किस प्रकार देश को आजादी दिलाने में अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए खुशी खुशी फांसी के फंदे को चूमा है।

भारत ही नहीं अपितु विश्व के इतिहास में चंदेरी को एक अलग अनूठा एवं महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अतीत के दिल को दहला देने वाली, रोंगटे खड़े कर देने वाली एक नहीं अनेक घटनाओं को अपने दामन में समेटे यह नगर उन सम्माननीय नगरों की सूची में शामिल है जो कभी चित्तौड़, रणथंबोर, बूंदी और झांसी जैसे विरले स्थानों को प्राप्त है।

जब जब देश में 1857 ईस्वी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ में आहुति देने वाले देशभक्त मंगल पांडे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब वगैरह, आगे आने वाले समय में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, तिलक, सुभाष चंद्र बोस, पटेल, गांधी आदि के साथ-साथ हजारों-हजार लोगों के देश के प्रति किए गए बलिदान को याद किया जावेगा।

तब-तब चंदेरी राज्य में बुंदेला वंश की अंतिम निशानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अति विश्वसनीय सहयोगी उनके दाहिने हाथ युवराज मर्दन सिंह बुंदेला याद आते रहेंगे।

1857 ईस्वी के गदर में रानी लक्ष्मीबाई का साथ देकर स्वतंत्रता संग्राम में नायक का गौरव हासिल करने वाले मातृभूमि प्रेमी मर्दन सिंह बुंदेला ने अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की योजना बड़ी ही सूझबूझ के साथ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में तैयार की थी।

यह वही वीर मर्दन सिंह बुंदेला है जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा देशी राजाओं के विरुद्ध अपनाई जा रही तत्कालीन नीति का जबरदस्त विरोध करने के कारण अंग्रेजों की खिलाफत करने वालों की सूची में प्रमुखता से उनका नाम दर्ज हुआ था।


*झांसी अंग्रेजों की गले की फांसी* का नारे लगाने वाला यह वही मर्दन सिंह बुंदेला है जिसने 1858 ईस्वी में अंग्रेजों के विरुद्ध हमले में नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे, शाहगढ़ राजा बख्तबली शाह वगैरह के साथ-साथ लक्ष्मीबाई के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजी सेना के सिपहसालारों को दिन में तारे दिखा कर पीछे हटने भाग जाने को विवश किया था।

बुंदेलखंड में क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रही, अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने वाली मर्दानगी रानी लक्ष्मीबाई की टीम में मर्दन सिंह बुंदेला जैसे वतन परस्त शामिल थे जिन के सहयोग से लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के खिलाफ लंबा संघर्ष किया।

फिरंगियों को हर मोर्चे पर टक्कर देने के कारण बुंदेलखंड में आजादी के दीवानों पर अंग्रेजी सरकार ने विवश होकर इन्हें पकड़ने के लिए बकायदा इनाम की घोषणा कर दी थी।

आजादी के मतवालों की टोली के मुखिया रानी लक्ष्मीबाई के सिर पर ₹ बीस हजार तो बांदा के राजा नवाब अली बहादुर द्वितीय पर ₹ दस हजार, बानपुर चंदेरी के राजा मर्दन सिंह बुंदेला पर ₹ आठ हजार तो किसी पर छै: हजार किसी पर तीन हजार तो किसी पर ₹ दो हजार इनाम रखा गया।

मातृभूमि के प्रति वफादारी, वतन के प्रति समर्पण बलिदान की भावना विदेशियों से अपने नगर, क्षेत्र और देश को मुक्त कराने वाली भावना से ओतप्रोत एक बार नहीं तीन बार सीधे-सीधे अंग्रेज हयूरोज से युद्ध करने वाले ऐसे रणबांकुरे मर्दन सिंह बुंदेला के रूप में चंदेरी के तार भारत के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ते हैं।


हमें नाज है चंदेरी की पवित्र माटी पर जो ऐसे वीर सपूत की एक नहीं अनेक क्रिया कलापों की साक्षी है। हमें गर्व है क्रांतिकारी मर्दन सिंह बुंदेला सहित अपने उन तमाम नाम अनाम वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर जिनके द्वारा दी गई कुर्बानी के कारण आज हम आजादी के खुले माहौल में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा तले सम्मान पूर्वक खुली सांसे ले रहे हैं।

ऐसी विभूतियों के नाम उनकी कुर्बानी शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। देश पर मर मिटने का जज्बा बरकरार रखने की प्रेरणा स्रोत उनकी प्रतिमा नगर के मुख्य चौराहा पर स्थापित होना चाहिए। पीड़ा होती है आज वह गुमनामी के पन्नों और अध्याय में समाए हुए हैं। जिनकी चर्चाएं जिला, प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर हर आम होना चाहिए वह आज महज रस्मों रिवाज की खाना पूर्ति तक सीमित रह गए हैं।

देश को आजादी दिलाने में देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने में अपना सब कुछ बलिदान करने वाले, गौरवशाली अतीत के एक प्रेरणादायक किरदार, गर्व से सर ऊंचा कर देने वाले वीर सपूत मर्दन सिंह बुंदेला की 22 जुलाई 2025 पुण्यतिथि के अवसर पर सादर शत-शत नमन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि इन दो शब्दों के साथ अर्पित करते हैं कि--


 *मर कर भी कम ना होगी वतन की उल्फत*

 *मेरी मिट्टी से भी खुशबू ए वतन आवेगीं*

*चन्देरी पर्यटन -- सुखद स्मृति*

*एक दिन तो गुजारिए चंदेरी में* 

 लेखक -

मजीद खां पठान (सदस्य)

जिला पर्यटन संवर्धन परिषद

     चंदेरी मध्य प्रदेश